Saturday, March 21, 2009

तुम्हारी याद में

चाँदी- से चमकते बादलों
के बीच से निकलता
चाँदी की थाली में
मक्खन की डली-सा रखा
दूज का चाँद ,
जब नन्हे बच्चे की तरह
मुस्कराता-सा दिखता है ,
प्यार की स्याही में डूबा
मन की किताब का हर पन्ना तब ,
बस तुम्हारी याद दिलाता है
जब ये चाँद
रातों को यूँ ही
आंखमिचौली खेलता है
मेरे संग ,
में थक-हारकर बैठ जाता हूँ ,
इसे ढूँढ नही पाता
बादलों के बीच ,
तब हवाओं में लहराकर
तुम्हारी यादों से लिपटा
कोई झोंका रुमाल बनकर
मेरे माथे के पसीने को पोछ जाता है
में बैठा-बैठा
बस तुम्हे सोचता रह जाता हूँ ,
अपने मन को काबू में नही रख पाता ;
बस तुमसे मिलने की घड़ी के इंतज़ार में
हर पल
घड़ी सा टिक-टिक करता ,
अंगुलियों में दिनों को
प्राईमरी पाठशाला के बच्चों की तरह
गिनता हूँ
तुम्हारी याद में जब भी रातों में
चाँद से आंखमिचौली खेलता हूँ ,
तो वैसा ही मज़ा पाता हूँ
जैसा नेपाली मजदूर 'हंस बहादुर' को रहा है--
दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद
मिली रोटी खाने में

4 comments:

  1. Good . Keep it up. Time mile to mujhe bhi pad liya kar
    http://1minuteplease.blogspot.com

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  2. ब्लाग जगत में आपका स्वागत है।
    आशा है कि आप अपने लेखन से ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।



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