तुम्हारी याद में
चाँदी- से चमकते बादलों
के बीच से निकलता
चाँदी की थाली में
मक्खन की डली-सा रखा
दूज का चाँद ,
जब नन्हे बच्चे की तरह
मुस्कराता-सा दिखता है ,
प्यार की स्याही में डूबा
मन की किताब का हर पन्ना तब ,
बस तुम्हारी याद दिलाता है ।
जब ये चाँद
रातों को यूँ ही
आंखमिचौली खेलता है
मेरे संग ,
में थक-हारकर बैठ जाता हूँ ,
इसे ढूँढ नही पाता
बादलों के बीच ,
तब हवाओं में लहराकर
तुम्हारी यादों से लिपटा
कोई झोंका रुमाल बनकर
मेरे माथे के पसीने को पोछ जाता है ।
में बैठा-बैठा
बस तुम्हे सोचता रह जाता हूँ ,
अपने मन को काबू में नही रख पाता ;
बस तुमसे मिलने की घड़ी के इंतज़ार में
हर पल
घड़ी सा टिक-टिक करता ,
अंगुलियों में दिनों को
प्राईमरी पाठशाला के बच्चों की तरह
गिनता हूँ ।
तुम्हारी याद में जब भी रातों में
चाँद से आंखमिचौली खेलता हूँ ,
तो वैसा ही मज़ा पाता हूँ
जैसा नेपाली मजदूर 'हंस बहादुर' को आ रहा है--
दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद
मिली रोटी खाने में ।
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Good
ReplyDeleteGood . Keep it up. Time mile to mujhe bhi pad liya kar
ReplyDeletehttp://1minuteplease.blogspot.com
ब्लाग जगत में आपका स्वागत है।
ReplyDeleteआशा है कि आप अपने लेखन से ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपके ब्लाग की स्वागत चर्चा पर जाने के लिए यहां क्लिक करें।
वाह, अच्छी कविता लिखी है आपने.
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