Saturday, March 21, 2009

तुम्हारी याद में

चाँदी- से चमकते बादलों
के बीच से निकलता
चाँदी की थाली में
मक्खन की डली-सा रखा
दूज का चाँद ,
जब नन्हे बच्चे की तरह
मुस्कराता-सा दिखता है ,
प्यार की स्याही में डूबा
मन की किताब का हर पन्ना तब ,
बस तुम्हारी याद दिलाता है
जब ये चाँद
रातों को यूँ ही
आंखमिचौली खेलता है
मेरे संग ,
में थक-हारकर बैठ जाता हूँ ,
इसे ढूँढ नही पाता
बादलों के बीच ,
तब हवाओं में लहराकर
तुम्हारी यादों से लिपटा
कोई झोंका रुमाल बनकर
मेरे माथे के पसीने को पोछ जाता है
में बैठा-बैठा
बस तुम्हे सोचता रह जाता हूँ ,
अपने मन को काबू में नही रख पाता ;
बस तुमसे मिलने की घड़ी के इंतज़ार में
हर पल
घड़ी सा टिक-टिक करता ,
अंगुलियों में दिनों को
प्राईमरी पाठशाला के बच्चों की तरह
गिनता हूँ
तुम्हारी याद में जब भी रातों में
चाँद से आंखमिचौली खेलता हूँ ,
तो वैसा ही मज़ा पाता हूँ
जैसा नेपाली मजदूर 'हंस बहादुर' को रहा है--
दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद
मिली रोटी खाने में

Friday, March 20, 2009

मेरी दुनिया
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गुड़ की डली- सा मीठा बचपन
चला गया
पर अपनी कच्ची मिटटी के
गुल्लक से
कुछ मीठी यादों के सिक्के
डाल गया
मेरी जवानी के खजाने में ।
वो प्यारा बचपन ,
जब चाकलेट , टाफी ,मिठाई ,
और खिलौनों का ढेर था ,
माँ की गोद ,
राजा- रानी और परियों की कहानी में
मेरी दुनिया बसती थी तब ,
मगर अब बड़ा होने पर
मेरी दुनिया ही बदल गई है ।
क्रिकेट के मैदान ,
लड़कपन की ठिठोली ,
स्कूल - कॉलेज की
पढा़ई के
गलियारों से होता हुआ ,
भटकते - भटकते आज
एक नए
आसमान के नीचे
पहुँच गया

यहाँ हाथ
की रेखाओं-से फैले
आड़े-तिरछे रास्तों में मुझे
अपनी मंजिल का रास्ता नही मालूम ;
जिस भी रास्ते में कदम बढाता हूँ
ज़िन्दगी रूठकर दामन छुडाने लगती है ।
बीते बचपन की कहानियों में
राजा-रानी थे ,
परियां थी ;
हर तरफ़ बस सुकून ही सुकून था ,
मगर अब
बचपन जैसा कुछ भी तो नही ;
हाँ एक परी जरूर है
बचपन की परी जैसी ,
जो मुझसे प्यार तो बहुत करती है,
पर
खाने को माँ की तरह,
तरह-तरह के पकवान नही देती ;
शाम को मेरे घर आने पर
बस एक ही बात मुझसे कहती है --
" राशन खत्म हो गया है ,
कुछ कमाकर लाये हो तो
बाज़ार से थोड़ा राशन ले आओ । "
जीवन और मृत्यु
.
मृत्यु एक भय है
और
जीवन !
उस भय की अवाधि
.
जीवन एक द्वंद है
समय और
प्राणी के बीच ,
और
मृत्यु उस द्वंद का
परिणाम,
समय की
विजय के रूप में
.
जीवन शुरु होता है
नवजात के रुदन पर
और समाप्त होता है
किशोर ,युवा और बूढों
के रुदन पर ,
किंतु मृत्यु का कोई आरम्भ ,
कोई अंत नही
वो तो
अंतिम लक्ष्य है
प्रत्येक जीवन का
.
जीवन है
कलकल करती बहती नदी,
और मृत्यु है
शांत और अथाह सागर

Thursday, March 19, 2009

माँ
अपने हाथों की
सलाईयों से ,
परिवार को ,
स्वेटर की तरह
बुनने वाली
औरत
बहू

सास -ससुर ,
देवर -ननद ,
पति -बच्चे ,
सबके कमरों में
चौबीस घंटे
जलने वाली
ट्यूबलाइट
बहन

राखी के दिन
सूनी कलाई
को देखकर
याद आने वाली लड़की

लड़की

पैदा
हुई तो

नीम का स्वाद लायी
एक घर में ,
दूसरे घर गई
तो मनीप्लांट हो गई